गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मेरे राम

निशब्द निशा मै है मन विचलित ,दुंद रहा मन राम, राम

तन, मन सब कुछ राम राम ,

साकार ब्रह्म ,साकार रूप है राम

रग ,रग मै बसे राम ,घट घट मै बसे राम

चहु और बसे कण कण मै बसे राम

राम , राम ,राम

मन की आस बस राम तन का अंत बस राम

तुम ही हो मेरे उद्धार करता , मेरे राम

पाऊ जो जीवन मै दर्शन तुहार

तो धो डालू अशरुओ से चरण तुहार

कब मिलगा ,फल मेरी भक्ति का ,

इस आस मै जीवन रही गुजार

कभी तो इस धरती पे भी तुमको आना होगा एक बार फिर

साकार कर जाना होगा ,जीवन मै भक्तो का उद्धार

मेरे रोम रोम मै बसे भगवान मेरे राम

तुम्हरे दर्श बिन सूना जीवन ,सुनी पड़ी दुनिया मेरी

तोड़ निशब्द निशा को आजा एक बार

देजाओ जीवन मै आशीष ,एक बार फिर

जाओ मेरे राम

जाओ मेरे राम |

सोमवार, 25 जनवरी 2010

सरिता का मोक्ष


बह रही है सरिता अपनी ही धाराओ ,मै सब कुछ छोड़ कर
जीवन के सारे बन्धनों को तोड़ कर
हां सरिता का प्रवाह समय के साथ साथ बहुत तेज हो रहा है
उसे जल्दी है सागर मै अपना अस्तित्व खोने की
फिर भी उसे रास्ते मै आये कई पहाड़ो से सीखना है जीवन के जड़त्व को
और रोकना नहीं है अपना वेग
और जो समय से आगे चले वो सरिता अपने साथ उठा ना दे कोई बाद
हां डरती हूँ कही वो गंगा से कोसी ना बन जाए
और बहा ना ले जाए अपने साथ जुड़े कई सपने
हां ,आज भाग्य से तुम आमिले हो सागर की कही तुम्हारी ही आस मै भटक रही थी
अपनी विशाल धाराओ मै सरिता
तुमने सामने आकर आज थाम लिया उसकी प्रचंड लहरों को
की थमो तुम्हारी मंजिल ये नहीं ,
तुम रोहिणी हो तुमको तो अभी और उचाईयो पर जाना है
अपने वेग को शांत करो ,जीवन धारो को दो एक नया आयाम
हां शांत करो इस वेग को ,नहीं तो ये तुम्हारे साथ ना जाने कितनी बस्तियों को उजाड़ देगा
हां इस सागर के मिलन के बिना अधूरी है सरिता
सरिता को अपनी पहचान देने वाले सागर तुम मानो ना मानो सरिता तुम्हारा इस अंश अपने मै समेटे बह रही है जीवन की इन गहरी जल धाराओ मै ,इसी प्रतीक्षा मै कभी तो सागर से होगा उसका अंतिम मिलन
वही तो होगा सरिता का मोक्ष

रविवार, 24 जनवरी 2010

एक सपना खुली आँखों का


मै भी देखती एक सपना खुली आँखों से,
की वो मोड़ एक बार फिर आजाये ,
हां उस रात की तरह सजी हु मै
नयी दुल्हन की तरह और तुम साथ हो मेरे
पास हो बहुत फिर भी अहसासों से दूर नजर आते हो ,
इसलिए देनी पड़ी है शब्दों को जुबा
उसी महकती रात की तरह मै बन जाना चाहती हूँ नयी दुल्हन
मेहँदी के खुशबु वाले महकते हाथ और महकते मोगरे मै
एक बार फिर महक जाना चाहती हूँ मै ,
सूर्ख रंग मै रंगी हुए
,अपने आप मै जीवन के सारे रंगों को समेटे हुए एक बार फिर ...............
आँखे बंद करती हूँ तो खो जाती हु
वही घंटो तुम्हारे काँधे पे सर रखे तुम्हे सुनते हुए
कितना ,खुबसूरत है था ना वो पल ,
सब कुछ मन की कही फिर भी उन अनकही सी
गुनागुना रही हूँ मै,
उन पलों को सुनहरी धुप मै नदी के किसी किनारे तुम्हारे साथ
हां मेहंदी लगे हाथो मै ,हां तुम्हारे हाथो मै हाथ ।
पहले कभी कह नहीं पायी ,हां घूँघट उठाने से पहले की मुह दिखाई मांगना चाहती हूँ आज तुमसे आज ,
सब कुछ है पर सुनी पड़ी है कदमो की आहटे
इसीलिए छम -छम करती पायलों केसाथसब कुछ खनकता हुआ महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
हां इसीलिए मांगना चाहती हूँ पायले,
एक बार फिर बन जान चाहती हूँ दुल्हन तुम्हारे साथ
तुम तो सब कुछ भुलाए बैठे हो ,तो फिर क्यों ?
ना गुन्गुनालू ये पल दोबारा तुम्हारे साथ
सरिता -सागर

सपना

मन को लागे नए पर ,दूर तक उड़ने को
जो चाहा वो मिल गया सनम
फिर क्यों दिल कहे तेरे काँधे पे बैठ जाने को
ऐसा लगे की बरस रहा प्यार तेरा ,अंखियों से
झगड़ रहा अधिकार तेरा फिर भी ,
किसको मानु अपना तुझको जो सोप गया जीवन
उसको जो आज जता रहा अधिकार अपना
कोई नहीं अपना जानती हूँ
सच हो नहीं सकता सपना .सपने पुरे करने के लिए जिगर चाहिए
और वो होसला जो सिर्फ तुम्हारे पास है हां जी ,जो सिर्फ मेरे साथ है

बुधवार, 20 जनवरी 2010

सरस्वती और बसंती बाई

आज जनम दिन है मेरी दादी बंसतबाई का
हां ,और आज जनम दिन है सरस्वती का उस सरस्वती का जो कही पूरी नहीं हो सकी !
हर तरफ लोग पहन रहे बसंती रंग ,आज रंगा हर कोई इसी बसंत के रंग मै
फिर क्यों या याद रही है मुझको बसंती बाई{जीजा}
हां वो इतनी बुदी महिला ही थी जिसने स्वीकार किया था अपने पोते का ये प्रेम विवाह
हां बहुत अलग थी वो रुदिवादी विचारधाराओ से ,वो करवाना चाहती थी नोकरी मुझसे
बनवाना चाहती थी अपने पोते का घर ,आँगन
हां आज तुम्हारे ही रूप मै जनम हुआ था सरस्वती का |
हां ,सरस्वती कभी पूरी नहीं होती ,क्योकि वो इसीतरह जनम लेती रहती है कभी .माँ तो कभी दादी बनकर
तुम्हारे रूप मै ।
तुम युही अपने आशीर्वाद के साथ हम्रारे दिलो मै निवास करती रहोगी ,औरदेती रहोगी ज्ञान और सोभाग्य
आशीष सदा ,
हां तुम्हारा ही तो रूप है आज की सरस्वती
हां तुम अशिश्ती रहो युही सदा ,दादी बनकर तो कभी माँ बनकर



मंगलवार, 19 जनवरी 2010

GHUTAN: माँ

GHUTAN: माँ

माँ

क्या होती है माँ ?
नहीं पता मुझको ,क्योकि मै बन नहीं सकी कभी माँ
हां अपनी माँ के साकार रूप को देखा है मेने ,
इसीलिए ही शायद मन अपने स्त्री होने के अपने अस्तित्व को खोज रहा है
मुझको याद है उसका अलसुबह उठ जाना ,हमारे लिए तैयारी करना
कितना प्यार गुंधा होता था ,उन मैथी के पराठो मै ?
हां ,अब मुझको पल पल याद आता है जब मै नहीं बन सकी हु एक माँ
माँ के सपनो के आँगन से तो मै निकल आई हु यतार्थ जीवन मै
और हां बन नहीं सकी हु माँ
हां माँ कभी मै रो नहीं सकी तुम्हारी गोद मै सर रखे ,किस्मत से शिकायत किये की मै नहीं बन सकी हु माँ
जानती हु मै जब तुम देखती हो मुझको किसी खिलोने से खेलते हुए तो क्या सोच रही होती हो ?
और होले से एक आवाज लगाकर कहती हो ,अरे क्या बचपना है ये !
मै जानती हु ,तुम कभी मेरे असीम दर्द का कोई अहसास मुझको नहीं कराना चाहती |
इसीलिए मुझको एक हलकी सी आह्ट से ही खीच लेती हो ,अपने आँचल मै
सच कहू तुमको पाकर सारे दर्द भूल जाती हु और बन जाना चाहती हु एक बार फिर वही छोटी सी तुम्हारी बेटी
हां तुम्हारा ह्रदय बड़ा विशाल है की तुमहंस कर छिपा देती हो या कभी डांट कर
मुझको पता है एक किसान तभी खुश होता है जब उसकी बचाई बिजवारी भी उसको भरपुर फसल देती है |
पत्थर पूजते पूजते भी अब हार गयी हु माँ ,
इसीलिए भाग जाना चाहती हु ,इस दुनिया से दूर छीप जाना चाहती हूँ तुम्हारे आँचल मै
हां इसीलिए की कभी ना बन सकुगी माँ |



पत्थर का मसीहा




श्रद्धा से पूजे कोई" पत्थर" तो वो भी बन जाए खुदा ,
हम तो पूजे पत्थर ,वो पत्थर जो बन बैठा है मसीहा

कहते रहे लोग विशवास नहीं करना 
और हम लगाये बैठे है आस एक पत्थर से

ये विशवास ही तो है मेरा राम के पूज रहा मन एक पत्थर
जानता है मन एक दिन तो पत्थर भी जाग उठेगा मेरी करुणपुकार से,

और भर देगा मेरा आँचल अपने दुलार से ,
हां सब कुछ श्रद्धा और विशवास का ही तो खेल है ये

कि मान बैठा है एक पत्थर को मसीहा
हां वो पत्थर का मसीहा कभी तो देखेगा 

,प्यार भरी निगाहों से मेरे खाली आँचल को भी ,
और देगा जीवन को नया नाम ,और नया रूप

हां कभी तो वो पत्थर भी बन जाएगा मेरे लिए" पत्थर का मसीहा "|

सोमवार, 18 जनवरी 2010

कुछ नहीं पता



हम तुमको चाहे या ना चाहे ये खुद हमको भी पता नहीं
ये सिलसिला क्यों है खुद नहीं पता
तुझमे दुन्दते है खुदा हमको मिलेगा या नहीं हमको नहीं पता
फिर भी बेबस से घूमते है हम तेरा नाम दिल से लगाए क्यों ?
ये खुद भी नहीं पता |
क्यों कर बैठा है दिल ये खता खुद हमको भी नहीं पता ?
तेरी बंदगी मै है जो मजा ,वो खुद तुझको भी नहीं पता ।
श्रद्धा का अर्थ जाना है जीवन से ,साकार रूप पाया तुममे ,
सब कुछ क़हा फिर भी बहुत कुछ क़हा अनकहा ,क्यों?
ये खुद मुझको भी नहीं पता ।
क्या,तलाशता है तुझमे दिल खुद मुझको भी नहीं पता ?
सोचा नहीं था ,ये मोड़ भी आयेगा ,की तुम साथ होंगे तो जी उठेगा फिर मन
खिल उठा है मन का रोम रोम खिली खिली धुप की तरह
तुम चाँद हो या सूरज खुद मुझको भी नहीं पता ?
हां सुनहली धुप हो या ठंडी चांदनी खुद खिल उठी जिन्दगी को भी नहीं पता ?
या सब कुछ सामने है फिर भी मुझको कुछ नहीं पता ?
की क्या है ये ?
सजा या खता ?







जीवन और तुम

तुम और ये जीवन दोनों एक दुसरे के पूरक हैं
तुम बिन जीवन नहीं ,तुम बिन मै नहीं
मेने पाया है तुममे वो पूरा इंसान जो मुझको कही पति नहीं नजर आया ,
मेरे शब्दों को तुमने ही दिया है साकार रूप ,
और जीवन जीवन को दिया है सार्थकता का साथ
हां तुम ,वो धीरज ही तो हो ,जिसके बिना जीवन का कोई मोल नहीं
कभी कह नहीं पाती वो हजारो बाते तुमको जो पग पग देती है मेरा साथ
और तुमको समझा नहीं पाती ,अपनी घुटन
मुझको तलाश है आध्यात्म की ।
और तुम्हारे स्नेह ने बना रखा है मुझको अपने काँधे की चिड़िया
तुमने ही दिया है जीवन को अनंत सोच का आकाश
फिर क्यों अपने काँधे पे ही बिठाये रखना चाहते हो अपनी इस चिड़िया को ?
तीसरी फ़ैल कहते कहते ,तुमने मुझको ला खड़ा किया है जीवनको पी एच डी के सामने
क्यों ,डरता है तुम्हारा असीम स्नेह की कही धारण ना करलू कोई भगवा ?
नहीं ,मेने तुम्हारे रंग का भगवा धारण किया है और अब मै शायद इस जन्म मै और किसी रंग मै ना रंग सकू|

कैसे समझाऊ तुमको ?
जीवन की ये धारा अब जिस और मुड़ चली है वो अब किसी बंधन मै बंधा नहीं है|
वो मुक्त है ,अनंत आकाश का राहू है ,जो पाना नहीं,देना चाहता हैं |
अपना जीवन समर्पित करना चाहता है दुखियों की सेवा के नाम

क्यों समझा नहीं पारही ये घुटन तुमको ?
शायद इसीलिए की तुम और जीवन एक दुसरे के पूरक हो !


रविवार, 17 जनवरी 2010

सितारों से वास्ता

जो जानता है ,सूरज और चाँद तक उसकी पहुँच नहीं होगी ,
वो रखता है सितारों से वास्ता
कभी मानता है हनुमान जी को ,
तो कभी शनि मंदिर गुहार लगाता
क्या मंदिरों मंदिरों भटकने से बदल जायेगी तक़दीर ?
हां ,अगर ऐसा ही कुछ होता तो शायद तो राम को कभी ना होता वनवास
और वैदेही यु हरी ना जाती ,
रावन जेसा महाज्ञानी ,सबसे बड़ा शिव भक्त ,क्यों ?
ना बदल सका अपनी तक़दीर
जो तय है ,वो अब बदला नहीं जासकता
उसमे कुछ सुधार किया जासकता है बस
चाहो तो तुम सुधार लो अपने सितारे या कह लो अपनी तक़दीर
मंदिरों मै नहीं बस्ता आज का भगवान्
वो तुम्हे मिल जाएगा किसी चाय की होटल पर अपने नन्हे हाथोसे कप प्लेट धोता
,कही किसी कोने मै तुम्हारी झूठन उठाते ,
उसे पूजो ,उसको प्रसाद चदाओ ,उसे अपनाओ
बदल जाएगी तकदीरे ।
बदलना है तकदीरों को तो बदलो अपने घरो मै दिन भर तुम्हारे लिए पसीना बहाती ,कभी ना शिकायत करने वाली तुम्हारी माँ.या पत्नी की तक़दीर
बहुत कुछ है बदलने को अभी बाकी ,
हां बस एक बार शुरुवात तो करो ,हां किसी मंदिर से नहीं
अपने ही उस घर से जहां तुमने अपनी पिता को रूद्र का अवतार नहीं माना
और कभी माँ को कभी शक्ति समझ कर नहीं पूजा
जहा पग ,पग किया तुमनेशक्ति के रूप मै आई अपनी पत्नी का अपमान
सुधारना है सितारों को तो ,शुरुवात अपने घर अपने सबसे बड़े तीर्थ से करो ।
हां यकीं है मुझको बदल जाएगे सितारे तुम्हारे
और तुम टाटा ,बिरला ना सही एक खुबसूरत जीवन के मालिक जरुर बन जाओगे |
वो खूब सूरत जीवन जो शायद टाटा ,बिरला और अम्बानी के पास भी नहीं
पाजाओगे वो असीम शान्ति ,सुकून और चैन ,जिसके लिए दुनिया हिल स्टेशनों पे भटकती है
हां .जो जानता है सूरज और चाँद उसकी पहुच नहीं होगी ,
वो रखता है सितारों से वास्ता|
सरिता



शनिवार, 16 जनवरी 2010

सितारे

जीवन मै किसका कब तक ,क़हा तक साथ है ये तय किया है विधाता ने ,
हम तो सितारों के हाथ की कठपुतली है मात्र ,
ये हमको पता है ,तो फिर क्यों घबरा जाते हो तुम इन सितारों के बदलने से
सरिता कभी रस्ते नहीं बदला करती ,उसका रास्ता कठिन है
पर फिर भी वो बेताब है सागर से मिलने को ।
उसका जीवन इसी साँस के साथ बंधा है ,की उसको सागर से मिलना है ।
उसके रास्ते मै अभी तो कई मोड़ आने वाले है पर मेरे सागर तुम मत घबराना
क्योकि सरिता लक्ष्य हिन् है तुम्हारे मिलन केबिना |
ये जीवन की परिणिति है ,की जो सबको आसानी से मिल जाए वो किसी एक के लिए अमूल्य होता है |
मेरे सागर तुम तो अमूल्य हो ,क्योकि तुम्हारी कीमत सरिता ही जानती है ,
और तुम सरिता का प्रारंभ भी तुम्हारे ही जल के जमने से हुआ है और उसका अंत भी तुममे विलीन होना ही है |
मुझको मेरा अस्तित्व देने वाले ,इस अंत हिन् जीवन के तुम ही तो सच्चे साथी हो ।
बाकी तो सब वासनाओं से भरे ,स्वार्थ के पुजारी है |
ओ सरिता ओ सरिता ,ये पुकार है सागर की
तो फिर क्यों दोडी नहीं आयगी सरिता तुम्हारी इस पुकार पे |
सूना है किसी से की समझदार सितारों पे हुकूमत करते है तो काहे विशवास नहीं करते सागर तुम ?
सितारों ने तय किया है सागर -सरिता का ये अद्भुत मिलन
तो क्यों घबराते हो इस मिलन से तुम |

कसूर

घुटती हुई एक लड़की ने हाथ ही तो बढाया था तुम्हारी तरफ विशवास का
अनोखे थे ,सितारे तुम्हारे शायद ये सोचकर
लेकिन तुम कभी समझ ही नहीं सके उसके मन की गहराई
और तुमने तोल दिया वासना और धन की चाहत से ,
आत्मा की गहराई को ,
शायद एक नादान कर बैठी थी
तुम पे विशवास करने की खता
सोचा था तुम भीड़ से जुदा हो ,गहरे हो तुम
पर तुम तो मुझसे भी कमजोर थे
हां कसूर क्या था उसका ?जिसने पूज लिया था तुमको ,उसका ?
क्या श्रद्धा ,समर्पण और विशवास का यही सिला है ?
अगर है तो ये मेरा कसूर है के एक नादान बड़ा बैठी विशवास का हाथ तुम्हारे साथ
अपनी ही निगाहों मै छोटे साबित कर दिए है तुमने श्रद्धा औरनिस्वार्थ स्नेह जैसे शब्द
एक पल मै झुका दिया है फरिश्तो के सामने मेरा मस्तक
किनसे शर्मिन्दा हु ,सोच रही हु तुम से ,या अपने आप से
शायद यही कसूर था उस नादान लड़की का जो बड़ा बैठी तुम्हारी तरफ विशवास का हाथ
कभी ना सिख पाने वाला पाठ पड़ा दिया तुमने उस नादान लड़की को
हां ये ही था कसूर उसका ,की उसने तुमको खुदा माना |

पिता

देखा है मेने अपनी पिता को, अपने कंधो पे मेरे और छोटी बहन का बिस्ता टाँगे ,
जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।
हां मेरा वो पिता अब कमजोर हो चुका है बोझ उठाते उठाते ,
असहनीय शरीर के कष्टों से लड़ते देखा है मेने ,
मन
की पीडाओं को हमेशा हँस के छिपा गया
पर छिपा नहीं सकता और सहनीय इन तन की पीडाओं को ,
हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना
लड़ता रहा वो के कामरेट बन कर ,मजबूरो और असाहायों के लिए
पर आज वो विवश है अपने ही दर्द के आगे
जिसको नहीं देखा मेने कभी भीगी आँखों
आज उसकी की आखो मै अपने ही शरीर की पीड़ा के आंसू देखे है
ये कैसा इन्साफ है ईश्वर तेरा ,जो सहता रहे उसी के नाम दर्द का खजाना है क्यों ?
है ईश्वर मेने नहीं किया कभी तुझसे कोई सवाल .पर आज पूछना है क्यों है इन्साफ तेरा ?
हां अब बुदा हो चला है मेरा पिता अपने दर्दो से लड़ते लड़ते ,
पर आज भी है ईश्वर हारा नहीं वो ,घुटने नहीं टेके है उसने तेरे दिए असहनीय दर्दो के आगे
हां अगर वो मेरा पिता है तो वो कभी नहीं टेकेगा गुटने तेरे दर्दो के आगे
तेरा दिया हर नया दर्द हमको और अधिक मजबूत बना कर,खड़ा कर देता है तेरे सामने मेरे मालिक
सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है मेने इन बत्तीस वर्षो मै अपने पिता के आगे ,
कोई इन्तहा ही नहीं तुने दर्द का सागर भरने मै ,
आज तक कही शिकायत थी तुमसे मेरे पिता लेकिन आज मुझको घमंड है की तुम हो मेरे पिता
हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण जो आज एक वजूद बन कर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता हो
तुम मुझको बना सके इंजीनियर या डॉक्टर ,हां तुमने मुझको दिया है अपनी रगों मै वो खून जो
ता उम्र लड़ता रहेगा इस दुनिया की कुरीतियों के खिलाफ ,और गरबो के हको के लिए
आज समझ सकी हु इतना बड़ा होकर भी तुमने अपने को इतना छोटा क्यों बनाए रखा !
छोटा आदमी है इंसान के सबसे करीब होता है ना
हां और अपनी जगह तो इस दुनिया मै बनाने की जगह दिलो मै बनानी चाहिए ,किसी चोराहे पर मूर्ति लगाना इतना उचित तुमने नहीं समझा जितना ठण्ड से बीमार लोगो को तुमने अपना ओदा कबल देना समझा
तुम्हारे अन्दर केंसान को तो ना जाने कब से समझ चुकी हु ,पर आज मुझको महसूस हुई है तुम्हारे तन के ये असहनीय पीड़ा |
लोग भगवान् को मंदिरों मै दुन्दते है और मने अपने को हमेशा अपने को फरिश्तो के करीब पाया |
क्यों नहीं कोई मिला कोई बुरा करने वाला? मुझको इस जीवन मै आज समझ सकी हूँ|
क्योकि मेरी रगो मै वही तुम्हारा ही खून दोड रहा है ,जो शमता रखा है दर्द के खिलाफ लड़ने की |
हां मुझको याद है अपने पिता का अपने कंधो पे अपनी बहन और मेरा बिस्ता टांग कर चलना और अपनी ही कविताओ को गुनगुनाते हुए ,दर्द को भुला देना |
मेरे पिता तुम कभी हारना नहीं ,क्योकि मेरी आत्मा तुझमे बस कर ही जी रही है |
मुझको अभी तुम्झारी बहुत जरुरत है इस दर्द के खिलाफ
अब तक कही तुम तनहा थे लेकिन अब साथ हूँ मै भी अब तुम्हारे इस दर्द के खिलाफ |
लाखो की जायदाद से भी अमूल्य चीज दी है तुमने मुझको मेरे पिता हां तुमने अपनी आत्मा के दर्द स्वामी बना दिया मुझको आज |
दुनिया की सबसे बड़ी नियामत दी है तुमने मुझको आज
हां आज ये राहू निकल पढा है उदित होते नये सूरज के साथ ,और लाया है मेरे जीवन मै लाया है नया सवेरा अपने पिता के साथ |
हां मुझको याद है तुम्हार मुझको समझाना ,वो परिभाषा औरत होने की
तुम्हारे कठोर शबदो के पीछे छिपे असीम स्नेह को आज समझ चुकी हु |
खुश हो की तुने मुझको कही का इंजीनियर या डोक्टर नहीं बनाया |
हां तुमने मुझको बनया है दर्द के खिलाफ लड़ने वाला एक इंसान ,हां मेरी आँखों से बहते हुए आंसू महसूस कर रहे है तुम्हारे उस असीम स्नेह को , मेरे पिता





गुरुवार, 14 जनवरी 2010

आकाश

जीवन मै हमेशा आत्मा दुदतीअपना आकाश
दुदती रही अपना अस्तित्व
,कही मिला नहीं मुझको अपने होने का अस्तित्व
एक लड़की कभी पा ना सकी माँ और पिता की गोद मै सर रखकर रोने का अहसास ]
एक पत्नी कभी पा ना सकी ,अपनी मुसीबत के आगे खड़े होने वाले पति को
या ये कहने वाले को की तुम कोन होते हो मेरी पत्नी को अपमानित करने वाले
क्या हु मै ? बिस्तर पर सजा सामान ,जो चाहे ना चाहे उसे आगोश मै आना ही होता है ।
कोई समझ ही नहीं पाया ,या मै समझा ही नहीं पायी की मै भी एक औरत हु जो चाहती है अपना एक आकाश |
हर कोई अपना बन कर मिला क़हा मै बहत प्यार करता हूँ तुमसे ,
पर रोने को कभी कोई कान्धा नहीं होता था |
सोचती हु क्या पुरुष को असीम स्नेह और दुलार देने के लिए मेरा जनम हुआ है ?
क्या कभी कोई ये नहीं कहेगा की कब तक तुम सहती ही रहोगी ?
क्या कोई शिकायत नहीं करोगी तुम ?
हां नहीं शायद क्योकि पत्थर को पूजा तो संसार उसे भगवान् कह देगा
लेकिन किसी नारी ने अपने को मिटाकर किसी के प्यार को सीचा तो संसार उसे कुलटा बना देगा |
कितनी अजीब विदाम्ब्नाये है जीवन की तुम करो अधिकार
और मै करू तो शोभा नहीं देता |
समझ ही नहीं पायी जीवन की इस उन्सुल्झी पहेली को की क्या हूँ आखिर मै ?
क्या तलाशती हु मै ?
खो ही गयी हु मै ,पगला ही गयी हु जीवन से कभी ना मिलने वाले पिता के स्नेह और माँ की गोद को
घुट गयी हु मै |
दिल कहता है पहाडो की चोटियों पे जाकर अपने मन की सारी वेदनाओं को जोर जोर से आवाज लगाकर उस ईश्वर से कहूँ की क्यों वंचित रखा है उसने मुझसे जीवन मै मिलने वाले हर रिश्तो के स्नेह को ?
अपने अपनों को चाहा ,परायो को चाहा .पर सभी पागल ही समझते रहे |
कहते रहे पगली है ?सच कहू शायद पागल होना जयादा ठीक है इस जीवन से क्योकि किसी पागल को नहीं चाहिए होती अपने अस्तित्व की तलाश ?

जीवन के सारे भावो मै अपना सब कुछ समर्पित कर देने के बाद भी .कही कोई नहीं ऐसा जिसमे
दिखाई देता हो मुझको अपना अस्तित्व |
सब कुछ छोड़ कर ईश्वर ने दिया है मेरा साथ ,दिखा रहा है मुझको वो एक नया रास्ता ,नया आकाश
हां एक नया आकाश मेरी आत्मा के अस्तित्व का |

सरिता
























































































































बुधवार, 13 जनवरी 2010

सरिता पर बाँध

सालो से बाँध बना था सरिता के अहसासों पर
ही अन्दर कही कुछ घुट रहा था
हां ,तुमने ही तो तोड़ डाला है ये बाँध ,अपने स्नेह की असीम शक्ति से
और उसकी विशाल लहरों को दिया है अहसासों का नया आकाश
जीने की हसरते ,अपने सागर से मिलने का रास्ता |
तुमने ही तो सुनी पड़ी ,बाट जोहती दुल्हन को दिया है अपने प्रियतम से मिलने का वचन
हां तुम ही ने तो दिया है सरिता को नया ,आकाश नया जीवन |
खिल उठी है तुम्हारा असीम स्नेह पाकर सरिता
टूट गयी है सारी घुटन ,तुम्हारा चरण स्पर्श पाकर |
हां एक बार फिर हिलोरे मारने लगी है सरिता की लहरे
के झूम के वो कहउठी है तय है उसका सागर से मिलन |



तुम बिन

तुम बिन सुनी पड़ी है मन की आहटे,
तुम बिन सुनी है पायलों की झंकार ,
साथ हो फिर भी साथ नहीं ,आज हो इतिहास नहीं
कह नहीं सकी ,कभी समझा नहीं सकी तोहे मन के ये आहटे
तुमसे ही तो जीना सिखा है मेने ,तो काहे भूले हो मुझको तुम
श्रद्धा ,विशवास ,समर्पण ,पूजा और स्नेह के अथाह सागर को तुम ही समझाया है
तो फिर क्यों अपने ही विशवास की डोर से दूर क्यों हो तुम ,
तुम बिन क्या ,हंसी है मेरे होटो पे ,क्या चांदनी बिखरी है मेरे आँचल मै ।
बिसरा ही दिया है ,जीवन ने तो बिदा की नयी दुल्हन को तिन दिन के मिलन के बाद
इसीलिए तो सुनी पड़ी है ,सरिता


तनहाई

साथ हो तुम फिर भी तनहाई  है मन के आँगन मै
सब कुछ है पर तुम बिन सुनी पड़ी है आहटे

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

घुटन

दम तोड़ रही है है जिन्दगी एक अजीब सी घुटन मै
तुम क़हा हो ,दूर इस अपनत्व और प्यार से
दम तोड़ चुकी है दिल की हसरते अब ,
तुम्हारे साथ एक बार फिर जी उठना चाहती है
पर तनहा हु मै इस घुटन मै ,आज भी
क्यों साथ के साथ भी महसूस होती है ये घुटन
सोचती हु कोई राम बनकर आजाये ,और इस अहिल्या का भी उद्धार करे
आजाद कर दे इस अहिल्या को भी इस पत्थर की घुटन से
हां जीना चाहती हु मै भी ,आजाद होकर जीवन की इस घुटन से

सिर्फ अपने राम के चरणों मै |



तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................