मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

        बच्ची

एक भरे पुरे परिवार मै अपने एक बड़े भाई और छोटी बहन के साथ एक माध्यम वर्गीय परिवार मै रहने वाली लड़की रीन
पिता एक सरकारी कर्मचारी माँ एक साधरण घरेलू महिला|
.रीना अपनी उम्र के पच्चीस बसंत पार कर इन्तजार कर रही है अपने मन के सपनो के सोदागर का ,पर अभी जब भी कोई रिश्ता घर मै आता है माँ कहती है अभी तो रीना एम .बी ए करेगी अभी क़हा से शादी अभी तो हमारी बच्ची पद रही है साहब |
इसी तरह तेविस से पच्चीस सालगुजर गये ,अपने मन के आँगन मै वो सपने बुनती रही और माँ और पिता उसे पदाते रहे |
 धीरे धीरे उसके सपने दम तोड़ते रहे और वो लोक लाज और मरियादा मै बंधी कभी अपने माँ और पिता को कह ही नहीं सकी की मुझको शादी करनी है |
साथ की सहेलियां सुसराल जाती रही ,क्योकि रीना पड़ने मै बहुत अच्छी थी उसकी भावनाओं को कभी समझा ही नहीं गया |घंटो अकेले मै वो रोती रही ,उदास गीतों मै अपने सपनो को सोचती रही |

 किसी ने सोचा भी नहीं की अब बच्ची बड़ी हो गयी है और अब वो क्या चाहती हैं |उसकी हसरतो और अरमानो की कोई कीमत नही थीउसके माँ पिता के सामने |

आज एम .बी.ए का रिजल्ट आया और वो पास हो गयी |आज वो बेहद खुश थी क्योकि आज वो बड़ी होने वाली थी बेहद खुश
लहराते हुए अपने सपनो के सोदागर को बस अब अपने बेहद करीब ही महसूस कर रही थी ,आज सारी दुनिया उसके कदमो मै थी |घर  आकर उसने अपना परिणाम दिखाया ,तो माँ ने क़हा अब तो रीना की जाओं किसी भी बड़ी जगहलग जायेगी एक पल को रीना को लगा ,क्या माँ कभी ये महसूस नहीं करेगी की मै बड़ी होगी हूँ और अब सत्ताविस साल की भी ?


लेकिन रीना एक साधरण लड़की थी कभी कह ना सकी की वो क्या चाहती है ?माँ के आदेश के साथ हो जॉब के लिए आवेदन किया गया .और रीना को जॉब लग गयी |वही उसकी मुलाक़ात अपने साथ के सुनील से हुई ,दोनों नजदीक आनेलागे |
एक दिन दोनों ने एक दुसरे के सामने अपने मन की बातो का इजाहर किया |और तय हुआ की वो शादी करेगे एक दिन सुनील रीना के घर पहुचा और उसके माँ बाबा से बात की जवाब मिला अभी तो रीना बच्ची है वो शादी केसे करगी ,अभी तो उसकी छोटी बहन पद ही रही है ,भाई इंजिनयरिंग कर रहा है ......


.......................अभी तो रीना को नोकरी करना है |रीना सुनील के सामने बैठकर सब सुन रही थी ,बिना कुछ कहे वो अन्दर चली गयी और ऑफिस जाने के लिए तेयार होने लगी ...............................

जीवन चलता रहा रीना काम करती रही ,और अपने सपनो को सपनो मै ही देखतीही रही ..............क्योकि अभी तो रीना बच्ची है ,,,,,,,,,,,,,.?

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

सोचती हूँ कब तक जीती ही रहेगी  दुसरो के लिए औरत ,
कब अंत होगा उसके समर्पण का ?
कब लह लहा  उठंगे उसके सपने, आँखों  से बाहर आकर ?
अपनी आँखों को बंद किये क्यों इन्तजार करती हूँ सपनो के लह लहाने का ?
और सोचती हूँ
 इसी सब्र और इन्तजार का दुसरा नाम ईश्वर ने औरत रखा होगा 
हां ,बचपन से उम्र के आंखरी पल तक वो सपनो  के साथ ही दम तोड़ देती है ,
क्यों ?
हर बार ये सवाल मन को भेद जाता हैं ?
इतनी वेदनाये क्यों उसी के जीवन का हिस्सा  है?
इन ही सवालों से द्वंदों से लड़ते हुए आँख लग जाती है और फिर मै देखने लगती हूँ कभी ना पुरे होने वाला एक सपना |

एक आदत सी हो गयी है अपने सपनो से लड़ने की ,
हर बार टूटने के लिए ही मेरे सपने बने होते है
जानती हूँ ,पर फिर भी जीने की एक आस संजो लेती हूँ |
सोचरही हूँ कितना मुश्किल हो गया है न जीना
फिर भी इन के बहाने एक रास्ता निकाल लेती हूँ |
हर बार कोई न कोई कदमो मे आकर मांग ही लेता है कुर्बानी
मुझसे अपने सपनो की ,
माँ ,बेटी ,बहु या पत्नी बनकर भूलना ही होता होता है अपने सपनो को
कब तक चलती ही रहेगी ये अग्नि परिक्षाए |



















तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................