शनिवार, 16 जनवरी 2010

सितारे

जीवन मै किसका कब तक ,क़हा तक साथ है ये तय किया है विधाता ने ,
हम तो सितारों के हाथ की कठपुतली है मात्र ,
ये हमको पता है ,तो फिर क्यों घबरा जाते हो तुम इन सितारों के बदलने से
सरिता कभी रस्ते नहीं बदला करती ,उसका रास्ता कठिन है
पर फिर भी वो बेताब है सागर से मिलने को ।
उसका जीवन इसी साँस के साथ बंधा है ,की उसको सागर से मिलना है ।
उसके रास्ते मै अभी तो कई मोड़ आने वाले है पर मेरे सागर तुम मत घबराना
क्योकि सरिता लक्ष्य हिन् है तुम्हारे मिलन केबिना |
ये जीवन की परिणिति है ,की जो सबको आसानी से मिल जाए वो किसी एक के लिए अमूल्य होता है |
मेरे सागर तुम तो अमूल्य हो ,क्योकि तुम्हारी कीमत सरिता ही जानती है ,
और तुम सरिता का प्रारंभ भी तुम्हारे ही जल के जमने से हुआ है और उसका अंत भी तुममे विलीन होना ही है |
मुझको मेरा अस्तित्व देने वाले ,इस अंत हिन् जीवन के तुम ही तो सच्चे साथी हो ।
बाकी तो सब वासनाओं से भरे ,स्वार्थ के पुजारी है |
ओ सरिता ओ सरिता ,ये पुकार है सागर की
तो फिर क्यों दोडी नहीं आयगी सरिता तुम्हारी इस पुकार पे |
सूना है किसी से की समझदार सितारों पे हुकूमत करते है तो काहे विशवास नहीं करते सागर तुम ?
सितारों ने तय किया है सागर -सरिता का ये अद्भुत मिलन
तो क्यों घबराते हो इस मिलन से तुम |

कसूर

घुटती हुई एक लड़की ने हाथ ही तो बढाया था तुम्हारी तरफ विशवास का
अनोखे थे ,सितारे तुम्हारे शायद ये सोचकर
लेकिन तुम कभी समझ ही नहीं सके उसके मन की गहराई
और तुमने तोल दिया वासना और धन की चाहत से ,
आत्मा की गहराई को ,
शायद एक नादान कर बैठी थी
तुम पे विशवास करने की खता
सोचा था तुम भीड़ से जुदा हो ,गहरे हो तुम
पर तुम तो मुझसे भी कमजोर थे
हां कसूर क्या था उसका ?जिसने पूज लिया था तुमको ,उसका ?
क्या श्रद्धा ,समर्पण और विशवास का यही सिला है ?
अगर है तो ये मेरा कसूर है के एक नादान बड़ा बैठी विशवास का हाथ तुम्हारे साथ
अपनी ही निगाहों मै छोटे साबित कर दिए है तुमने श्रद्धा औरनिस्वार्थ स्नेह जैसे शब्द
एक पल मै झुका दिया है फरिश्तो के सामने मेरा मस्तक
किनसे शर्मिन्दा हु ,सोच रही हु तुम से ,या अपने आप से
शायद यही कसूर था उस नादान लड़की का जो बड़ा बैठी तुम्हारी तरफ विशवास का हाथ
कभी ना सिख पाने वाला पाठ पड़ा दिया तुमने उस नादान लड़की को
हां ये ही था कसूर उसका ,की उसने तुमको खुदा माना |

पिता

देखा है मेने अपनी पिता को, अपने कंधो पे मेरे और छोटी बहन का बिस्ता टाँगे ,
जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।
हां मेरा वो पिता अब कमजोर हो चुका है बोझ उठाते उठाते ,
असहनीय शरीर के कष्टों से लड़ते देखा है मेने ,
मन
की पीडाओं को हमेशा हँस के छिपा गया
पर छिपा नहीं सकता और सहनीय इन तन की पीडाओं को ,
हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना
लड़ता रहा वो के कामरेट बन कर ,मजबूरो और असाहायों के लिए
पर आज वो विवश है अपने ही दर्द के आगे
जिसको नहीं देखा मेने कभी भीगी आँखों
आज उसकी की आखो मै अपने ही शरीर की पीड़ा के आंसू देखे है
ये कैसा इन्साफ है ईश्वर तेरा ,जो सहता रहे उसी के नाम दर्द का खजाना है क्यों ?
है ईश्वर मेने नहीं किया कभी तुझसे कोई सवाल .पर आज पूछना है क्यों है इन्साफ तेरा ?
हां अब बुदा हो चला है मेरा पिता अपने दर्दो से लड़ते लड़ते ,
पर आज भी है ईश्वर हारा नहीं वो ,घुटने नहीं टेके है उसने तेरे दिए असहनीय दर्दो के आगे
हां अगर वो मेरा पिता है तो वो कभी नहीं टेकेगा गुटने तेरे दर्दो के आगे
तेरा दिया हर नया दर्द हमको और अधिक मजबूत बना कर,खड़ा कर देता है तेरे सामने मेरे मालिक
सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है मेने इन बत्तीस वर्षो मै अपने पिता के आगे ,
कोई इन्तहा ही नहीं तुने दर्द का सागर भरने मै ,
आज तक कही शिकायत थी तुमसे मेरे पिता लेकिन आज मुझको घमंड है की तुम हो मेरे पिता
हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण जो आज एक वजूद बन कर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता हो
तुम मुझको बना सके इंजीनियर या डॉक्टर ,हां तुमने मुझको दिया है अपनी रगों मै वो खून जो
ता उम्र लड़ता रहेगा इस दुनिया की कुरीतियों के खिलाफ ,और गरबो के हको के लिए
आज समझ सकी हु इतना बड़ा होकर भी तुमने अपने को इतना छोटा क्यों बनाए रखा !
छोटा आदमी है इंसान के सबसे करीब होता है ना
हां और अपनी जगह तो इस दुनिया मै बनाने की जगह दिलो मै बनानी चाहिए ,किसी चोराहे पर मूर्ति लगाना इतना उचित तुमने नहीं समझा जितना ठण्ड से बीमार लोगो को तुमने अपना ओदा कबल देना समझा
तुम्हारे अन्दर केंसान को तो ना जाने कब से समझ चुकी हु ,पर आज मुझको महसूस हुई है तुम्हारे तन के ये असहनीय पीड़ा |
लोग भगवान् को मंदिरों मै दुन्दते है और मने अपने को हमेशा अपने को फरिश्तो के करीब पाया |
क्यों नहीं कोई मिला कोई बुरा करने वाला? मुझको इस जीवन मै आज समझ सकी हूँ|
क्योकि मेरी रगो मै वही तुम्हारा ही खून दोड रहा है ,जो शमता रखा है दर्द के खिलाफ लड़ने की |
हां मुझको याद है अपने पिता का अपने कंधो पे अपनी बहन और मेरा बिस्ता टांग कर चलना और अपनी ही कविताओ को गुनगुनाते हुए ,दर्द को भुला देना |
मेरे पिता तुम कभी हारना नहीं ,क्योकि मेरी आत्मा तुझमे बस कर ही जी रही है |
मुझको अभी तुम्झारी बहुत जरुरत है इस दर्द के खिलाफ
अब तक कही तुम तनहा थे लेकिन अब साथ हूँ मै भी अब तुम्हारे इस दर्द के खिलाफ |
लाखो की जायदाद से भी अमूल्य चीज दी है तुमने मुझको मेरे पिता हां तुमने अपनी आत्मा के दर्द स्वामी बना दिया मुझको आज |
दुनिया की सबसे बड़ी नियामत दी है तुमने मुझको आज
हां आज ये राहू निकल पढा है उदित होते नये सूरज के साथ ,और लाया है मेरे जीवन मै लाया है नया सवेरा अपने पिता के साथ |
हां मुझको याद है तुम्हार मुझको समझाना ,वो परिभाषा औरत होने की
तुम्हारे कठोर शबदो के पीछे छिपे असीम स्नेह को आज समझ चुकी हु |
खुश हो की तुने मुझको कही का इंजीनियर या डोक्टर नहीं बनाया |
हां तुमने मुझको बनया है दर्द के खिलाफ लड़ने वाला एक इंसान ,हां मेरी आँखों से बहते हुए आंसू महसूस कर रहे है तुम्हारे उस असीम स्नेह को , मेरे पिता





तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................