एक सपना और एक सच
बुनती ही आ रही थी आँखे एक सपना
हां ,एक सपना दुल्हन बनने का .
बनी भी दुल्हन ,पर जिन्दगी और समझोतों की दुल्हन
वो दिन ना मेरी आँखों मै ख़ुशी थी ,ना कोई उमंग
लगता था ,सरिता के प्रवाह मै ये भी एक टापू हैं |
सब कुछ तो जल गया था उसमे ,कही नहीं थी ,
मासूम सी चूडियो की खनक ,ना मेहंदी की खुशबु
सब कुछ होकर भी शून्य था |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
मेरे मुरली मनोहर, इस वेदना में भी असीम शान्ति हैं , मन की अग्नि को शांत करता ये अश्रु जल हैं क्योकि इन सब की अंतरंगता में कान्हा तुम...