बुधवार, 9 मार्च 2011

ओ पुरुष

महिला दिवस पर ख़ास
ओ पुरुष 
बहुत कुछ बदला हैं तुमने 
हां ,
कब तुमने ,
एक अल्हड लड़की को प्रेमिका बना दिया |
और एक पल में पत्नी भी|
 कितना कुछ बदला हैं तुमने  
 वो कभी शिकायत भी नहीं कर सकी ,
सुनती ही रही,
सहती ही रही ,
कभी एक अच्छी बहु बनने के  लिए ,
तो सहती ही रही,
एक अच्छी बेटी बनने के लिए |
 हसरतो को मन में लिए,
घंटो तकिये पे सर ओंधा किये 
.रोती ही रही |
कभी तुमने पूछा भी नहीं 
फिर भी हर सुबह उतने ही स्नेह से ,
उसने  तुम्हारे लिए खाना बनाया,
और मुस्कुराते हुए चाय की प्याली दी ,
सोचती रही की काश कभी तो होगा एक दिन मेरा भी ,
मार दिया तुमने अन्दर की हसरतो से भरी लड़की को एक अच्छे बेटे बनने के लिए .
कहा गया वो प्रेमी ?
ये दुद्ती हैं हर औरत !
 कितना कुछ बदलते  आये हो,
पुरुष तुम समर्पण के नाम पर ?
कितनी हसरतो का गला घोट दिया हैं,
तुमने रिवाजो के नाम पर?
फिर भी औरत  हर बार इसी आस में,
की एक दिन तो मेरा होगा 
वो मुस्कुरा के पी जाती हैं अपने आंसू 
और अलसुबह ही मुस्कुरा के देती हैं तुम्हारे हाथो में चाय की प्याली और नाश्ते की प्लेट  ,
ये सोच कर ही की तुम्हारा दिन खराब न हो 
वो सजाएँ रहती हैं 
अपने होठो पे 
एक मुस्कुराहट 
ओ ,
पुरुष तुम्हारे लिए

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................