सपने
जब सत्य के धरातल पर ,
सत्य का धरातल यानी दुनियां ,वास्तविकता }
आकर टकराते हैं,
और टूटते हैं ,
तो बहुत तकलीफ होती हैं |
ये जान कर भी,
मन देखना चाहता है सपनें !
लगता है कितनी कडवी हकीकत,
पर क्या करे?
दुनियां ही कुछ इसी तरह की हैं |
पर मन है कि
सपनो के पीछे भागा फिरता है |
वो कुछ नहीं देखना चाहता,
सिर्फ अपने ही नजरियए से.
दुनियां को देखना चाहता हैं .
और, जब सपने टूटते हैं तो तड़प उठता है |
कैसा है ये बांवरा मन ?
हर बार दुनिया के,
पिंजरे से उड़ कर
बस अपनी ही हांका करता है |
डरते डरते उड़ना तो चाहता है.
पर अनजाने भय से,
सहम -सहम कर
बढता है |
और सपना पूरा हो,
इससे पहले ही सवेरे की आँख खुल जाती है ,
और जिन्दगी लौट आती है .
अपनी हकीकत में |
और वो सपना दम तोड़ देता है.
उन्ही उनींदीं आँखों के पीछे
और सुबह,
चाय की प्याली और श्रीमान के साथ ,
मैं कह रही होती हूँ -
हे ईश्वर !
अच्छा हुआ
ये एक सपना था
धीरज !