मेरे राम , मेरे आराध्य ,
जब भी ये आत्मा कराह उठती है ,
मैं चली आती हूँ तुम्हारे कदमो में ,
और हर बार तुम,
एक विशाल आत्मा के ,
अधिपति बनकर मुझे ,
और मजबूती से खड़ा कर देते हो|
और खीच लेते हो अपने चरणों में ,
बह उठती है इन आँखों से अश्रु धार,
तुम्हारे चरणों को,
अपने अश्रुओं से धोने के लिए .
मेरे राम
मेरा सारा दर्द ,सारी वेदना
तुम्हारे मेरे मस्तक पर हाथ रखते ही
चली जाती है .
और सिर्फ रह जाती है ये अश्रु धार,
तुम्हारे कदमो को अपनी निष्पाप भक्ति से धोने के लिए |
कभी लगता है आज भी मेरी भक्ति में ,
श्रद्धा में कोई कमी तो नहीं ,
जो तुम देते हो ये अश्रुधार
इन आँखों को ,
मेरे राम , मेरे आराध्य
मेरे पास तेरी भक्ति के खजाने के सिवा
कुछ भी नहीं
इसलिए मुझे सदा तुच्छ जान
आशीष देता रह |
मेरे भगवान , मेरे राम
इन आँखों में ये अश्रु न रहें तो कैसे
धो सकूंगी तेरे चरणों को ,
मेरे राम ,
इसलिए मुझे दर्द दे ताकि निकलती रहे आह
और में सदा बनी रहूँ ,
तेरे करीब , इन चरणों में
मेरे राम ,
मेरे आराध्य