सोमवार, 4 अप्रैल 2011

खुद तुम्हे नहीं पता ,क्या हो तुम मेरे लिए


कई बार ऐसा मोड जीवन में आता हैं की जिसके लिए हम जी रहे होते हैं उसे भी कोई अंदाजा नहीं होता की उसकी हमारी जिंदगी में क्या अनमोल जगह हैं ,इसीलिए कई बार ये लिख कर भी जताना पद जाता हैं
की पति देव आप की क्या जगह हैं जीवन में सिर्फ महसूस कर लीजिए बस ..............................................

एक कविता सिर्फ उनके लिए ..
खुद तुम्हे नहीं पता ,क्या हो तुम मेरे लिए ?
खुद तुम्हे नहीं पता,
क्या हो तुम मेरे लिए ?
मेरी आँखों से तुम्हारे स्नेह की मदहोशी ,
और बैचेनी में आँखों से टपकती ,
पवित्र आंसू की बूंद हो तुम |
क्या हो तुम मेरे लिए ?
ये बताने के लिए मेरे पास ,
तुम्हारी तरह कठीन शब्दों का महसागर नहीं ,
मेरे पास हैं ,
सिर्फ नैनो की खामोश भाषा 
मेरा मौन समर्पण ,
और मेरी श्रद्धा ही हैं |
खुद तुम्हे भी नहीं पता ,क्या हो तुम मेरे लिए ?
तुम्हारी किसी बात पे शर्म से झुक जाती हैं
वो शर्म से झुकती नजर हो तुम 
क्या हो तुम मेरे लिए खुद तुम्हे भी नहीं पता ?
कभी प्यार से एक बार जो" पागल "कह देते हो ,
कई दिनों तक ,
उसका छाया रहने वाला नशा हो तुम |
खुद तुम्हे भी नहीं पता ,क्या हो तुम मेरे लिए ?
तुम्हारी ख़ामोशी कत्ल करती हैं ,
और तुम्हारी निगाहें फिर धडकने दे देती हैं |
एक बार मर कर फिर जी उठने वाली जिंदगी हो तुम |
खुद तुम्हे भी नहीं पता ,क्या हो तुम मेरे लिए ?
मुझे नहीं पता क्यों करते हो इतना प्यार इस पागल से ?
जी करता हैं तुम्हे झकोर -झकोर के पूछ ही लू 
और तुम्हारे कदमो से लिपट के रो ही लू ,
क्यों इतना प्यार हैं इस पागल से ?
खुद तुम्हे नहीं पता क्या हो तुम मेरे लिए ?
मन ,तन ,आत्मा और अपना सर्वस्व
न्योछावर करने के बाद भी लगता हैं ,
कही कोई कमी तो नहीं मेरे स्नेह और समर्पण में 
इसीलिए पल -पल सोचती हूँ,
कही मेरी श्रद्धा और समर्पण में कोई कमी न रह जाए |
खुद तुम्हे नहीं पता क्या हो तुम मेरे लिए ?
ये सोच कर ही कॉप उठती हूँ ,
की कभी अपने को माफ नहीं कर सकुंगी ,
जो कर न पायी कोई वचन पूरा |
इसीलिए जिसके प्रति मेरी आत्मा समर्पित हैं 
ऐसा भगवान के प्रति विशवास हो तुम ,
हां ऐसा अगाध "अनुराग " हो तुम ,
खुद तुम्हे नहीं पता क्या हो तुम मेरे लिए ?


तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................