बुधवार, 6 अप्रैल 2011

दर्द उठता हैं मेरे राम !

हर पल एक तीखा सा
दर्द उठता हैं .
लगता हैं कही कुछ चीर रहा हैं |


हां
ये तो मेरे ही दिल के टुकड़े हो रहे हैं ,
बट रहा हैं कुछ दो टुकडो में ,
ये केसी पीर हैं ?

में ज़िंदा हूँ
और कुछ चीर रहा हैं
ये तो मेरे ही दिल के टुकड़े हो रहे हैं

इतनी ख़ामोशी से ,
अन्दर ही अन्दर
तक तुमने मुझे चीर दिया
और में मुस्कुराती ही रही |

शायद इसी का नाम जिन्दगी हैं ,
ख़ामोशी से तुमने मुझे चीर दिया
और फिर भी में तुम्हे ही मुस्कुराते हुए देख कर खुश हूँ |


इतनी तकलीफ में भी में खुश हूँ
शायद इसीलिए ,
क्योकि इस दर्द की आह में भी तुम्हारा नाम हैं |
मेरे राम !

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................