जो दे दिया
एक पल में तीनो लोको का संसार
आँखे फुट पड़ी हैं ,थमती नहीं मेरी
इससे बड़ा सुख संसार में क्या होगा ?
मेरे प्रभु
किस बंदगी से चूका सकुंगी ये उपकार तेरा |
मेरे लिए इतना कुछ लिख रखा था विधाता |
किस मुख को तेरी और रख देखू
मेरे मालिक !
ये केसी दिव्यानंद अनुभूति हैं जीवन की ?
जिसने एक ही पल में बदल दिया मेरा संसार |
तुम्हारी सरलता और सादगी पे मुग्ध हूँ मेरे कृष्ण - कन्हियाँ .
बिना मेरे शबदो से ही,
पड़ लिया संसार अनुभूति का |
अभिभूत हूँ बस
आज शब्द भी बहुत छोटे पड़े हैं तेरे मन की विशालता को समझने के लिए |
आज देखा हैं तेरा ये विराट और भव्य रूप मेने मेरे श्री हरी
धन्य कर दिया तुने ये जीवन |
सजा दी सदा के लिए मुस्कुराहठे
मेरे इन लबो पे |
"तुम्हारी अनुभूति मेरे श्री हरी !"