मंगलवार, 10 मई 2011

आप के श्री चरणों में प्रभु !

हे घनश्याम!
मीरा के गोपाल !
कान्हा में न भूल सकू ,
जीवन में कभी तेरा स्नेह अपार 
तेरी भक्ति में,
में मिट जाऊ|
बस ये ही श्रद्धा  रहे इस संसार |
नित दो मेरे जीवन को दुःख से  लड़ने की शक्ति ,
नित दो जीवन के शब्द कोष को नवीन शब्दों की भक्ति .
धन्य हूँ ! कृतार्थ हूँ ! अभिभूत हूँ !
जो पाया हैं तुम्हरा आलोकिक  स्नेह ,भक्ति संसार |
हर कोई मंदिर पूजे तुम्हे में, मैं पा जाऊं 
ऐसा  नहीं सोभाग्य ,
मेरा इस जीवन
इसीलिए करती रहूँ तुझे अर्पण अपनी अंतिम सांस तक
तेरा स्नेह जीवन अधिकार |
दूर कँहा खोजू ,
तुम तो बसे हो इस मस्तक के रक्त बिंदु से
बनकर सोभाग्य , श्रद्धा , विशवास , गर्व 
और मेरी आत्मा का सम्मान |
शक्ति देना , मुझे आशीष देना राम !
में निभा सकू अपने , 
वचन और विशवास की 
सदा ये लाज |

आप के श्री चरणों में प्रभु !
"अनुभूति "



तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................