ओ कान्हा ,
कृतार्थ कर दिया आप ने ,
स्वीकार मेरी भक्ति की अपने चरणों में ,
मुझे आज ये विष प्याला,
तेरे नाम मिला हैं ,तेरे नाम का विष प्याला
मुस्कुरा के में पी जाऊं,
ये जो सम्मान मिला हैं ,
कभी कंहा इनकार किया हैं तेरी किसी बात से कान्हा !
तेरे चरणों में शीश झुका के सब स्वीकार किया हैं
तेरी मीरा का निष्काशन भी इसके बाद हुआ था
जीवन में भक्ति का अब तो मार्ग खुला हैं,
जो सबसे प्यारा होए तो उसे छोड़ दीजो
सबसे बड़ा त्याग ये कर दीजो
एक बंधन था मोह का जो आत्मा से बंधा था
वो आज छुट गया अब तो उजाला ही उजाला हैं
कोई भ्रम नहीं सामने एक जीव से मोह था
वो अभी छुटा पडा हैं
पर परायों ने अपना होकर ये काम किया हैं
वो तो जानते ही नहीं उन्होंने मेरे मार्ग आसान किया हैं
नतमस्तक हूँ उनके आगे जिन्होंने ये काम किया हैं
सच खुशियाँ देने आये थे , दे गए उन्हें पता भी नहीं हैं
मेरे आँचल को भर
उन्होंने अपनी सहानुभूति में जो काम किया हैं
अद्भुत ,अनुपम सौगात के लिए धन्य हूँ प्रभु !
ये भी जीवन नया रूप दिया हैं
में जानू विष भी आप अमृत भी आप
आदि भी आप अनंत भी आप
कब कोनसा रूप धर मार्ग दिखोगे ?
कब आओगे ?कब चले जाओगे ?
तेरी ही माया हैं मेरी श्री हरी !
मेरे नारायण !
अभिभूत हूँ तेरी कृपा पाके
मेरे गिरिधर!
मेरे गोपाल !
पग -पग थाम जटिल समय आप ने ही मृत्यु
से थाम जीवन का मार्ग दिया था
आज जीवन को नया सोभाग्य और पवित्रता
का सम्मान दिया हैं ,
मेने अपना जीवन कान्हा नाम अर्पण किया हैं
जिसका हैं वो जाने अब
मेरे सोचने, कहने ,करने का
क्या काम लिखा हैं |
शब्द दिए आप ने मांगे भी आपने प्रभु !
तेरा तुझको अर्पण !
मेरे जगदीश्वर! आप ने इस तुच्छ पे,
ये कृपा कर इस जीवन को पवित्र धाम किया हैं |
इस लोक से उस लोक सदा आशिशोगे
इससे बड़ा क्या सुख सामान पाऊं में
बिन मांगे सब दिया हैं |
धन्य हूँ !
में जगदीश्वर !
मेरे कान्हा !
बस हर पग दे ठोकर ,
हर पग अन्दर से थाम मुझे बदाएं चलना
बाकी हैं अभी बहुत जीवन के काम ,
चुकाने रह गए हैं कितने अहसान
प्रभु !
मिटा के तेरी भक्ति में चुका सकू सभी
अहसान , सहानुभूति ये और वरदान दीजो |
इस पगली की भक्ति मेरे कान्हा सदा स्वीकार कीजो |
"तेरी बावरी अनुभूति कान्हा "
मेने अपने जीवन में अपनी हर सांस से स्नेह अपने आराध्य श्रीराम,श्रीकृष्ण , श्रीहरी को किया हैं मेरी आत्मा का रोम -रोम मेरा हर शब्द किसी इंसान के नहीं उस जगदीश्वर के प्रति समर्पित हैं |