मेरे कोस्तुभ धारी !
मेरे कान्हा !
के श्री चरणों में अर्पित एक अत्यंत भावमयी रचना ,
के श्री चरणों में अर्पित एक अत्यंत भावमयी रचना ,
एक -एक शब्द आत्मा को छूकर जाता हुआ.|
हमें रास्तो की जरूरत नहीं ,हमें तेरे पैरों के निशा मिल गये हैं |
जन -जन की सेवा यही मेरी पूजा ,
तुम ही तुम हो कोई न दूजा ,
हमें रास्तो की जरूरत नहीं ,हमें तेरे पैरों के निशा मिल गये हैं |
जन -जन की सेवा यही मेरी पूजा ,
तुम ही तुम हो कोई न दूजा ,
तुमसे हैं सब कुछ रोशन ,
कण -कण में तू हैं |
कण -कण में तू हैं |
अनुभूति