रविवार, 29 मई 2011

हां मेरे प्रभु राम !

मेरे राम ,

ये संसार कहता रहा राम जी ने
सीता जी का त्याग किया |
सोचती हूँ !
कभी कोई समझ सका होगा राम,
आप के अंतर मन की वेदना को 
विरले ही समझ पाया होगा कोई
वो राम जिन्होंने एक काक {कोवे }
के सीता को परेशान करने पे ,
ब्रह्मा अस्त्र का उपयोग किया था |
संसार की सबसे बड़ी शक्ति का प्रयोग 
एक छोटी सी बात के लिए किया था ,
वो राम अपनी सीता का त्याग केसे कर सकते थे |

दुनिया कही न कही ये आरोप आप पे लगाती रही राम !
की राम जी ने सीता को त्याग दिया |
वो नहीं जाने ,
उन्ही जनक नंदिनी सीता के लिए ,
विशाल सागर को जीता था आप ने
केसे काटा होगा पल -पल कब कोन समझा हैं राम !

आप तो अपने होठों को बंद किये बस सहते ही रहे ,
कँहा कह सके अपनी पीड़ा को ,
बस त्याग और तपस्या की मूरत ही बने रहे .
तडपती रही आत्मा ,
दिखाएँ नहीं आप ने कभी अपने आसू 
बने रहे कठोर .


निभाते रहे पुरुष की मर्यादा
हां राम !
असीम स्नेह के सागर को छिपा जाना,
भी एक बहुत बड़ा त्याग था |

आप ने ही विशाल सागर को पार किया था ,
दशानन का वध|
हां , राम ये एक नारी का असीम स्नेह ही तो था
जिसके आगे आप अपने से भी विवश थे |
क्योकि अनन्य भाव और श्रद्धा से समर्पित थी वो नारी |
सीता तो अपने अश्रु बहाकर , 
व्यक्त कर देती थी अपनी पीड़ा को
और राम आप तो अपने अंतस से जलते ही रहे ,
कभी खोल न सके आप अपने होठो को , ,

सीता ने भी कितना सहा हैं राम ,
पवित्र होने के बाद भी , 
पराये पुरुष के घर में रहने की ,
अग्नि  परीक्षा से गुजरना पडा राम !

सामने होते हुए भी नहीं लगा सके ,
अपनी सीता को तो गले आप 
सोचती हूँ राम का ये रूप क्यों नहीं देखती दुनिया .
नारी की वेदना तो समझती हैं लेकिन 
वो जो रो नहीं सकता ,कह सकता
क्या वेदना नहीं उसकी?
स्नेह का अधिकारी वो नहीं !

कँहा चेन दिया दुनिया ने आप को !
पल -पल आप के नितांत
निजी विषयों के पीछे  ही पड़े रहते हैं  
दुनिया के लोगों ने तो उस सुख में भी लगा दी आग 
अपने प्राणों से प्यारी सीता को
छोड़ने का प्रश्न आप से किया ,
राम ,कितनी बड़ी संकट की घड़ी होगी ,
जब लगाया होगा ,
जब अपनी सीता को कहा होगा 
स्वार्थी , सहानुभूति का नाम दिया होगा |


न जाने कब तक भुगतते रहोगे उन शब्दों  की पीड़ा 
केसे किया होगा ?
अपनी आत्मा को शरीर से निकालने का ये काम 
हां राम ! 
केसे किया होगा अपनी सीते का त्याग ?


केसे जीते होगे ?
बिना अपनी सीते के , बड़े थे|
किसको कहे होगे अपनी पीड़ा !
घुटते रहे होगे ,कितना राम !

फिर भी संसार की सेवा के काम में ,
अपने दर्द को छिपा दिया राम आप ने
कोन समझ सका हैं आप की वेदना को !
सीता ही समझ सकी ,
क्योकि वो नहीं चाहती थी |
राम का मस्तक कभी 
किसी नारी के लिए संसार के सामने झुके
वो नहीं देना चाहती थी 
आप को दुनिया के सामने कोई 
नया नाम , 
इतना बड़ा त्याग किसी साधरण इंसान 
के बस की बात नहीं राम ,
आप अवतार ही हो स्वयं शिव का , 
कृष्ण का ,
नारायण का
राम आप राम ही हैं इसिलए 
इस संसार में आज भी दुनिया जप्ती हैं 
आप का नाम
ओ मेरे राम ,
मेरा  जीवन यूँ ही निकल जाए,
लेते -लेते आप का नाम |
इतनी शक्ति मुझे भी सहने की दीजों
और अपनी ही तरह कठोर होने का वरदान मुझे भी दीजों |

हां मेरे प्रभु राम !
शीश झुकाके करती हूँ 
आप के उस अनन्य त्याग को नमन
इतनी ही सहने की शक्ति मुझे भी देना ,
बस मेरे राम !

अनुभूति

कर रही आत्मा मेरी वीदिरण पुकार


मेरे कोस्तुभ धारी !
मेरे कान्हा !
कर रही आत्मा मेरी करुण पुकार
अब नहीं सहा जाता ,
चले आओ मेरे प्रभु !
बस एक बार
इस आत्मा की सुखी धरती पे
छा जाओ बन के घटा
बरस जाओ इस प्यासी आत्मा पे एक बार |
सुन लो ।
एक बार मेरी ये करुण पुकार !
अनुभूति

स्नेह का एक रूप ये भी !

मेरे कोस्तुभ धारी !
के चरणों में 
खुद को भी नहीं पता ,
पता हो तो भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं होती |
ऐसा भी होता हैं मेरे कन्हियाँ !

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................