शनिवार, 2 जुलाई 2011

मेरे जीवन का सबसे ज्यादा पसंदीदा गीत ,

मेरे जीवन का सबसे ज्यादा पसंदीदा गीत ,
इस गीत की मिठास और एक -एक शब्द कानो में गूंजता हैं 
और बैचेन सी जिन्दगी को 
चेन की पनाहों में नीद आती हैं |
अनुभूति

मेरे कोस्तुभ धारी ! तुम्हारी लीला तुम ही जानो


मेरे लिए भागवत जी एक किताब या पुराण नहीं हैं
जीवन के रोम-रोम में बसने वाले कान्हा का ज्ञान और स्नेह सागर हैं ,
मेरे शब्द मेरी आत्मा से फूटती अपने श्री हरी ! को पुकार हैं बस |

मेरे कोस्तुभ धारी !
जगदीश्वर ,श्री हरी !
अदिति को वरदान देने वाले ,
बलि को अपने वरुण पाश से मुक्त कर,
 सुतल का अधिपति बनाने वाले
मेरे कृष्णा !मेरी भी सुन
मुझे नही मांगना देवी अदिति की तरह कोई पुत्र
मुझे देना हैं तो दो अपने आशीष और भक्ति का वरदान
ज्ञान का वरदान ,
अपने वचनों को निभाने की क्षमता ,
हे कृष्णा !
तुम तो अनंत हो कण-कण में समाये हो
तुमसा देने वाला कोन
तुम ही जो छीन धन जीवन के सत्य की राह दो
अपना अनुरागी भी तुम ही बनाओ और बेर करने वाला भी तुम बनाओ
तुम्हारी लीला तुम ही जानो , 
मेरे तो तुम ही कृष्णा!
तुम ही राम
तुम ही नीलकंठ हो
कभी एक पल में अंत स्नेह सागर नाम कर दो
और कभी आँखों के जगाए सारे सपने अपने ही साथ ले जाओ
तुम्हारी माया अनंत हैं
तुम्हारे बिना जीवन के सारे सुख निराधार
में परछाई नहीं ,सत्य रूप हूँ
एक भोतिक देह इंसान
क्यों चाहू कृष्णा !
में तुम्हे अपनी साँसों में जीवन में हर कर्म में
मुझे खुद भी नहीं पता
देखि हैं मेने निर्जीव मूरत ही तेरी अब तक
हो मेरे आत्मा को तेरा प्रत्यक्ष दर्शन
दो मुझे बस ये वरदान
तेरी चरण धुली में अपने मस्तक पे लगाऊं
तो ये जीवन ये सालो की तपस्या
अपना तिल -तिल जलना सब एक क्षण में भूल जाऊं
मेरे कृष्णा !
मुझसे ही क्यों रूठे पड़े हो !
क्या जाने हो मेरी  लोगे परीक्षा कठिन तो ,
में छोड़ दू तेरी भक्ति का मार्ग कठिन
ये कभी ना होगा मुझे
भले ही तेरी भक्ति में यूँ ही में मिट जाऊं
जीवन मिला हैं जितना
बस तेरी अनुरागी बन ही बिताऊ |
श्री चरणों में अनुभूति

सारे संसार से अलग हैं मेरा सजना



मेरी वफाओं की खुशबु घटी नही,
और सयम के सांचे और
विश्वास की आग में पकती और
महकती ही जा रही हैं
और में मदहोश हूँ
हां में मदहोश हूँ !
तेरे नाम से
ओ मेरे प्रियतम !
सारे संसार से अलग हैं मेरा सजना
मेरा कोस्तुभ धारी !
हां मेरा मुरलीधर !
मेरा कृष्णा !
मेरा कान्हा !
हर रोज झाके रूप सुहाना दिखाकर मुझे
भागवत के पन्नो से ,
कहे कान्हा !
काहे तू रोये !काहे तू मिटे इतना !
ज़रा देख पलट में तो कब से संग साथ खड़ा इतना
समय हैं अभी ये साधना का
सयम का
एक दिन जरुर आउंगा
तुने जो पुकारा मुझे अपनी आत्मा से
हां थाम ले ज़रा अभी मुझे भी थम जाने दे
हां रुक जरा वो फूलो से महकी फिजा
तो आने दे |
होगा तेरा मेरा अद्भुत मिलन
ये अक्ष्णु विशवास रख
इस साधना और विशवास की
परीक्षा अभी हो जाने दे |
अनुभूति |
मेरे कोस्तुभ धारी!
इस भोर भी में बहाते -बहाते इन अखियन से स्नेह नीर
मांगू बस तेरा आशीष 
संसार के हर इंसान के लिए तेरा मन खुला पडा हैं कृष्णा !
मुझसे हो तू क्यों रूठा पडा हैं 
सबको मागा वर दिया हैं 
मुझे एक बूंद को भी तरसा दिया हैं |
तेरा इन्साफ हैं या किस्मत का कन्हाई 
में जानू तो तेरा आदेश और मुझे कुछ नहीं आया
और कुछ जान सकती
 तो में शायद पा जाती दुसरो की तरह 
तेरा स्नेह अपार 
मुझे सिखा दो दुनिया की तरह बनना
मिटा दो जीवन से ये बेचेनी 
दे दो मुझे भी मोक्ष
इतन ही अरज हैं मेरी मेरे कृष्णा !
मेरे राम !
अनुभूति


तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................