शनिवार, 20 अगस्त 2011

मेरे खुदा !अपने कदमो में इस धुल को कबूल कर

मेरे खुदा !
तेरी रहमतो का ये अमृत मुझपे यूँ बरसता हैं
इतनि दूर से भी
इस कायनात की हर फिजा से अपनी
चिंता को यूँ बया करता हैं
अल्लाह मुझपे यूँ मेहराबान
होगा अपनी किसमत पे ये भी यकीं था
जो देखा अहसास में फूटा ये दर्द
तो जाना हैं तेरी वफाओं
में बसी खुदाई को
तेरे कदमो में बैठ के इन आँखों से बरसती हैं
तेरी ही रूह की चांदनी
मेरे खुदा !
अपने कदमो में इस धुल को कबूल कर

अनुभूति


तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................