गुरुवार, 25 अगस्त 2011

अब अंत भी करो ,या खोल दो मेरी मुक्ति के द्वार

विदीर्ण ,विहल ह्रदय करता हैं घनश्याम तेरी पुकार
मेरे कृष्णा !
अब अंत भी करो ,या खोल दो मेरी मुक्ति के द्वार
में रोज गुहार लगाऊ
मेरे गिरिधर गोपाल !
इस स्नेह समंदर के करती हूँ तुझे पुकार
या चला मेरे द्वार
या मुझे ले चल अपने द्वार
दुःख,शोक ,चिंता कुछ नहीं मेरे पास
सुख की आस नहीं कृष्णा
बस अब भी जा मेरी आत्मा के धाम
कर दे अपनी चरण धूलि से
जीवन के इस क्षण -क्षण को
पावन मेरे श्याम !

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................