शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

रसात्मिका



रसात्मिका

तेरी पनाहों में जिंदगी दर्द भूल जाती हैं ,

दे जाती हैं कुछ पल अमिट स्मृतियों को

मैं आत्म विभोर हूं .....................

तेरी रहमतों से मेरे माधव !

तेरी इन सुकून भरी स्नेह की चांदनी में

में खिलती हूं जो चाँद खिला हो अमावस

तुम्हारा असीम स्नेह फूटता रहता हैं मेरी रूह से

इस आत्मा से निकले शब्दों से ......................

हां ,इसीलिए तो हूं

और तुम कहते हो मुझे रसात्मिका

मैं हूं !

तुम्हारी रसात्मिका ......................................

श्री चरणों में अनुभूति

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................