शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

नीर भरे नयन करूँ,
क्या में तुमसे क्या कहूँ सजन

मेरा मासूम मन कभी न समझ सका,
दुनिया की रीत 
ओ सजन !
वो तो पत्थर की मूरत को भी मानअपना 
करता रहा सदा ,
इन अश्रुओं से चरण  वंदन 
खोट कही मेरे साधना मे ही 
भक्ति में ,तपस्या मैं ही 
जो पा न सकी अपना प्रियतम 
सब कुछ हैं ,पर कुछ भी नहीं 
न पायल ,चूड़ी ,सिंदूर सजन 
खनकती चूड़ियों ही में उसके पास
भटकती रही ले मन की प्यास 
वो मुझे ठुकराता रहा ,
मासूम मन जान न सका ये बात 
जान नहीं सकी अपने और उसके बीच के 
बड़े  धरती -आकाश के अंतर की बात 
मेरा मासूम मन बस इन नीर भरे नैनों से उसे 
 पूजता ही रहा ,दुआए देता ही रहा 
पर वो मुझे खोजता ही रहा 
खोफ ,डर और मुसीबत और 
न जाने किन -किन
लोगो के साथ होने की बात
न में इस दुनिया में थी, प्रियतम 
न तेरी दुनिया, मुझे समझ आई
इसीलिए तो कहती हूँ कृष्णा !
मुझे भी दे इन सांसों से छुटकारा 
ले चल अपने साथ !
ले चल अपने साथ ,हां अब तो ले चल, 
सुन तो ले एक बार बस एक बार ,कुछ नहीं मांगूंगी  में दोबार
अब तो सुन ले या कुछ और बचा हैं 
तेरा मुझको देना इन आँखों के नाम
सुन  ले न ,अब तो सुन ले हां अब  तो सुन ले सुन तो ले एक बार



















तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................