मेरे राम !
अजब विडंबना जीवन की
सारे दुनिया के लिए खुले तेरे रोम -रोम के द्वार
जो पल -पल इन अखियन से बस
तेरे चरण पखारे
उसके कंहा की तुमने कभी कोई सेवा स्वीकार
हर सांस ,एक आह बनके गुजर रही
जो रोते -रोते भी बस तुझे ही पुकार रही
राम -राम ,ओ मेरे राम
तुम कंहा सूना करते हो
मेरे रोम -रोम की पुकार
काहे मोहे लगना नहीं आता
इस संसार सा स्निग्ध भोग तुझे
क्यों नहीं सीख सकी में स्वार्थ की विद्या अपार
तुझ बिनमुझसे छूटे पड़े हैं
अन्न -जल ,सिंगार
रूठे हैं मुझसे निंद्रा और बयार
रोते -रोते दिन बिता हैं
,ये रात भी तकिया भीगोते बीती जायेगी
लेकिन तेरे कदमो में ना बैठ पाने की
मेरे आत्मा की प्यास
केसे बुझ पाएगी ?
केसे तेरे कदमो की ये दासी
जी पाएगी ,
तुझे ना अहसास
तेरी बावरी मर जायगी
यूँ ही अपनी साँसों पे पुकारते -पुकारते
मेरे राम ,मेरे राम मेरे राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम
अजब विडंबना जीवन की
सारे दुनिया के लिए खुले तेरे रोम -रोम के द्वार
जो पल -पल इन अखियन से बस
तेरे चरण पखारे
उसके कंहा की तुमने कभी कोई सेवा स्वीकार
हर सांस ,एक आह बनके गुजर रही
जो रोते -रोते भी बस तुझे ही पुकार रही
राम -राम ,ओ मेरे राम
तुम कंहा सूना करते हो
मेरे रोम -रोम की पुकार
काहे मोहे लगना नहीं आता
इस संसार सा स्निग्ध भोग तुझे
क्यों नहीं सीख सकी में स्वार्थ की विद्या अपार
तुझ बिनमुझसे छूटे पड़े हैं
अन्न -जल ,सिंगार
रूठे हैं मुझसे निंद्रा और बयार
रोते -रोते दिन बिता हैं
,ये रात भी तकिया भीगोते बीती जायेगी
लेकिन तेरे कदमो में ना बैठ पाने की
मेरे आत्मा की प्यास
केसे बुझ पाएगी ?
केसे तेरे कदमो की ये दासी
जी पाएगी ,
तुझे ना अहसास
तेरी बावरी मर जायगी
यूँ ही अपनी साँसों पे पुकारते -पुकारते
मेरे राम ,मेरे राम मेरे राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम