गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

मुझे क्षमा करो मेरे राम !




मेरे राम !
मेरी आत्मा हमेशा अपने आसुंओं से भीगी 
आँखों से ,अपने लबो से 
चूमा करती हैं हैं तुम्हारे कदमो को ,
हा ठीक उसी तरह 
जब मेडलिन ने चूमा होगा 
अपने इशु के कदमो को 
धोया होगा अपने आसुओं से 
  लगाया होगा अपने असीम अनुराग का मलहम 
पर मेरे राम ,मेरे पास 
तुम्हारे  इन चरणों की सेवा के अतिरिक्त 
कुछ भी ऐसा नहींबचा
जो पवित्र हो निर्मल हो ,
जो  में कर सकूँ तुम्हे भेट 
में अज्ञानी  तेरी भक्ति का 
तरिका भी समझ ना पाई 
में दुःख देती रही तोहे 
और मेरे राम 
अपनी पत्थर सी कठोरता ओडे 
सहते ही रहे ,बस सदा की तरह खामोश 
आज समझी हूँ क्या हैं 
उस कठोरता के पीछे छिपा सत्य 
मुझे क्षमा करो ,क्षमा करो,क्षमा करो 
में समझ नहीं पायी तुम्हारी विशालता को 
निश्चलता को ,अंत हीन स्नेह सागर को
फट गया हैं मेरा ह्रदय आज 
तुम्हारी सहनशीलता के आगे 
में हार गई हूँ अब तुमसे लड़ते -लड़ते 
और तुम सदा ही स्नेह से
मुझे कर देते हो सराबोर
अपने कदमो से उठा कर  ,
देते हो स्नेह पूर्ण आलिंगन 
कृतार्थ  किया तुमने मुझे 
धन्य हूँ  में जो पाया हैं ये असीम स्नेह सागर .......
श्री चरणों में अनुभूति













तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................